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समरवीर गोकुला

समरवीर गोकुला जी भारत के उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास सिनसिनी गाँव के एक किसान सरदार थे। उनका वास्तविक नाम गोकुल देव था लेकिन अंग्रेजी इतिहासकारों और अन्य लोगों ने उन्हें गोकुला और गोकुल सिंह लिखा है। साल 1666 में मुगल बादशाह औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता पस्त हो चुकी थी। जहां मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम धर्म अपनाने को मजबूर किया जा रहा था।

औरंगजेब और उसके सैनिक धार्मिक कट्टरता के मद में चूर हिन्दू जनता को सताने में लगे हुए थे। वहीं इसी दौरान हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान की मथुरा में फौजदार के तौर पर नियुक्ति की गई थी। जिसके बाद एक बार अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला परंतु उन्हें लगान नहीं मिला क्योंकि मथुरा के पास सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान करने पर किसानों ने उन्हे लगान देने से मना कर दिया था, जो कि भारत के इतिहास में पहला असहयोग आन्दोलन था।

बता दें कि दिल्ली के सिंहासन की नाक तले समरवीर धर्मपरायण हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने औरंगजेब को हिदुत्व की ताकत का जबरदस्त एहसास दिलाया था। मई 1669 में जब अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया, उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे। इस दौरान भयंकर युद्ध हुआ लेकिन अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक नहीं पाई और सारे सैनिक गाजर-मूली की तरह काट दिए गए। गोकुल सिंह की सेना में जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव तथा मीणा सभी जातियों के हिन्दू थे, जो अपनी जाति-पाति मूलकर एक हिंदू के रूप में संगठित थे। उनकी इस जीत ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राणों का संचार किया था। वहीं अब्दुन्नवी की मौत के बाद हसन अली खान को कमान सौंपी गई और उसके नेतृत्व में ए मजबूत शाही सेना के साथ युद्ध में हिंदुओं के लिए संघर्ष करते हुए गोकुला जो शहीद हो गए। उसका बलिदान अत्याचारों को न सहने दुर्बलों के लिए आवाज उठाने और सामाजिक एकता के लिए काम करने की प्रेरणा देता ।