आदि शंकराचार्य

प्राचीन भारतीय परंपरा तथा धर्म के प्रचार प्रसार में आदि शंकराचार्य का काफी यहां योगदान रहा है। उनके द्वारा ही सनातन परंपरा के फैलाव के लिए भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की गई थी। बद्रीनाथ धाम उन चार धामों में से ही एक है जिनकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी
शंकराचार्य ने अनेक ग्रंथों की भी रचना की थी। बता दें कि चार साल की उम्र होते होते वे सभी वेदों का पाठ कर सकते थे और 12 Rolex replica वर्ष की उम्र में ही उन्होंने संन्यास लेकर घर त्याग दिया था। वहीं 32 वर्ष की उम्र में शंकराचार्य ने इस संसार को अलविदा कह दिया था। breitling replica watches

उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देते हुए कहा था,“हे मानव!तू स्वयं को पहचान, स्वयं को पहचानने के बाद तू ईश्वर को पहचान जाएगा।” वहीं शंकराचार्य के अनुसार शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य विद्यार्थी को अज्ञान से मुक्त कर उसे ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाना replica Hublot watches है। जिससे कि वह विद्या एवं अविद्या, सत्य एवं असत्य में अन्तर समझ सके और स्वंय में निहित अनन्त ज्ञान तथा अनन्त शक्ति की पहचान कर सके।