Dryogender

भगत सिंह

भगत सिंह देश के सम्पूर्ण युवा वर्ग के लिए एक प्रेरणा हैं,जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनके साहस को एक मिसाल की तरह देखा जा सकता है क्योंकि वह एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने फांसी से ठीक पहले भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाकर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने का काम किया था।

जलियांवाला बाग की घटना तथा काकोरी कांड से आहत होकर भगत सिंह ने अंग्रेजों को देश से उखाड़ फैंकने का प्रण लिया तथा साल 1926 में इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक संगठन “नौजवान भारत सभा” की स्थापना की। इतना ही नहीं लाला लाजपत राय की मृत्यु के प्रतिशोध में ए० एस० पी० सॉण्डर्स को गोली मारने तथा एसेम्बली में बम फैंकने की घटनाओं को भी उन्होंने ही अंजाम दिया था।

भगत सिंह एक अच्छे वक्ता पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा और सम्पादन भी किया था। भगत सिंह के जोश तथा उनकी ताकत को देखकर अंग्रेज खौफ खा रहे थे और किसी तरह भगत को दबाने के लिए मौके की तलाश कर रहे थे। इसी मौके की तलाश में बम कांड के बाद उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था। परंतु जेल में रहकर भी भगत सिंह आजादी की लड़ाई लड़ते रहे और उन्होंने भारतीय कैदियों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ लड़ाई के रूप में जेल से ही करीब 116 दिनों की भूख हड़ताल की। इसके बाद उन्हें और उनके साथियों को 07 अक्टूबर 1930 को मौत की सजा सुनाई गई। जहां फांसी के लिए 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया था लेकिन 23 मार्च को ही अंग्रेज अफसरों ने उन्हें फांसी दे दी। आज भी भारत भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखता है।